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________________ एगरणसत्तरिमो समवायो उनहत्तरवां समवाय १. समयखेते णं मंदरवज्जा एगण- सतरि वासा वासघरपव्वया . पण्णत्ता, तं जहापणतीसं वासा, तीसं वासहरा, वत्तारि उसुयारा। १. समयक्षेत्र/अढ़ाई द्वीप में उनहत्तर वर्प/क्षेत्र और मेरुवर्जित उनहत्तर वर्षधर पर्वत प्रज्ञप्त हैं, जैसे किपैंतीस वर्प, तीस वर्षधर और चार इपुकार । २. मंदरस्स पन्वयस्स पच्चत्थिमिल्लानो चरिमंतानो गोयमदीवस्स पच्चथिमिल्ले चरिमंते, एस णं एगणसरि जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णते। २. मन्दर-पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से गौतम द्वीप के पश्चिमी चरमान्त का अबाधतः अन्तर उनहत्तर हजार योजन का प्रज्ञप्त है। ३. मोहणिज्जवज्जाणं सत्तण्हं कम्माणं एगणसत्तरि उत्तरपगडीओ पण्णताओ। ३. मोहनीय-वजित शेप सात कर्मो की उनहत्तर उत्तर-प्रकृतियां प्रज्ञप्त है । समवाय-सुतं समवाय-सुतं १६५ समवाय-६६
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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