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________________ सडसठवां समवाय सत्तसट्ठिमो समवायो १. पंचसंवच्छरियस्स णं जुगस्त नक्खत्तमासेणं मिज्जमाणस्स सत्तसहि नक्खत्तमासा पण्णत्ता। १. नक्षत्रमास की गणना से पंच सांवत्सरिक युग के सड़सठ नक्षत्रमास प्रज्ञप्त हैं। २. हेमवत-हेरण्णवतियानो णं बाहाम्रो सत्तसहि-सत्तसहिजोयणसयाइं पणपण्णाई तिणि य भागा जोयणस्स आयामेणं पण्णताओ। २. हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र की वाहुएँ/भुजाएं सड़सठ-सड़सठ सौ पचपन योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से तीन भाग (६७५५३ योजन) आयाम कीलम्बी प्रज्ञप्त है। ३. मंदरस्स णं पन्वयस्स पुरत्थिमिल्लायो चरिमंताओ गोयमस्स णं दीवस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तसहि जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। ३. मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्त से गौतम द्वीप के पूर्वी चरमान्त का अवाधतः अन्तर सड़सठ हजार योजन का प्रज्ञप्त है। ४. सर्वसिपि णं नक्खत्ताणं सीमाविक्खंभेणं सत्तसद्धिं भागं विभाइए समंसे पण्णत्ते। ४. समस्त नक्षत्रों का सीमा-विष्कंभ/ विस्तार सड़सठ भागों से विभाजित करने पर समांश प्रज्ञप्त है। समवाय-सुत्तं १६३ समवाय-६७
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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