SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एगपणासमो समवाप्र १. नवहं बंभचेराणं एकावण्णं उद्देणकाला पण्णत्ता | २. चमरस्स णं असुरिदस्स असुररण्णो सभा सुधम्मा एकावण्णभसयसंनिविट्ठा पण्णत्ता । ३. एवं चेव बलिस्सवि । ४. सुप्पमे णं बलदेवे एकावण्णं वासस्यसहस्साइं परमाउं पालइत्ता सिद्धे वुद्धे मुत्ते तगडे परिणित्वडे सव्वदुक्ख होणे । ५. दंसरणावरणनामाणं - दोण्हं कम्माणं एकावरण उत्तरपगडीनो पण्णताओ । समवाय- सुत्त इक्यावनवां समवाय १. नो ब्रह्मचर्य [ अध्ययनों ] के इक्यावन उद्देशन - काल प्रज्ञप्त है । २. प्रमुरराज असुरेन्द्र चमर की सुधर्मा सभा इक्यावन सौ स्तम्भों पर मन्निविष्ट है । ३. इसी प्रकार वली की [ सभा भी ।] ४. वलदेव सुप्रभ इक्यावन शत- सहस्र / लाख वर्ष की परम प्रायु पाल कर मिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत और सर्व दुःख-मुक्त हुए । १४६ ५. दर्शनावरण और नाम- इन दो क्रमों की इक्यावन उत्तर- प्रकृतियाँ प्रज्ञप्त हैं । समवाय- ५१
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy