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________________ सरीरंगोवंगनामे सरीरबंधणनामे सरीरसंघायणनामे संघयणनामे संठाणनामे वणनामे गंधनामे रसनामे फासनामे अगरयलहुयनामे उवधायनामे पराघायनामे आणुपुन्वीनामे उस्सासनामे प्रातवनामे उज्जोयनामे विहगगइनामे तसनामे थावरनामे सुहुमनामे बायरनामे पज्जत्तनामे अपज्जत्तनामे साधारणसरीरनामे पत्तेयसरीरनामे थिरनामे अथिरनामे सुभनामे असुभनामे सुभगनामे दूभगनामे सुस्सरनामे दुस्सरनामे प्राएज्जनामे अणाएज्जनामे जसोकित्तिनामे अजसोकित्तिनामे निम्माणनामे तित्थकरनामे । शरीरांगोपांगनाम, शरीरवंधननाम, शरीरसंघातनाम, संहनननाम; संस्थाननाम, वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, अगुरुलघुनाम, उपघातनाम, पराघातनाम,पानुपूर्वीनाम, उच्छ वासनाम, आतपनाम, उद्योतनाम, विहगगतिनाम, सनाम, स्थावरनाम, सूक्ष्मनाम, वादरनाम, पर्याप्तनाम, अपर्याप्तनाम, साधारणशरीरनाम, प्रत्येकशरीरनाम, स्थिरनाम, अस्थिरनाम, शुभनाम, अशुभनाम, सुभगनाम, दुर्भगनाम, सुस्वरनाम, दुःस्वरनाम, आदेयनाम, अनादेयनाम, यश:कीर्तिनाम, अयशः कीर्तिनाम, निर्माणनाम, तीर्थङ्करनाम । ७. लवणे णं समुद्दे वायालीसं नागसाहस्सीओ अमितरियं वेलं धारति । ७. लवरणसमुद्र की आभ्यन्तर वेला के बयालीस हजार नाग धारण करते हैं । ८. महालियाए णं विमाणपविभत्तीए बितिए वग्गे वायालीसं उद्देसण- काला पण्णत्ता। ८. महती-विमान-प्रविभक्ति के दूसरे वर्ग में बयालीस हजार उद्देशन-काल प्रज्ञप्त हैं। ६. एगमेगाए प्रोसप्पिणीए पंचमछट्ठीओ समाप्रो बायालीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णत्तानो। ६. प्रत्येक अवसर्पिणी का पांचवां और छठा आरा बयालीस हजार वर्ष के कालमान का प्रज्ञप्त है। १०. एगमेगाए उस्सप्पिणीए पढम- वीयानो समानो बायालीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णतायो। १०. प्रत्येक उत्सर्पिणी का पहला और दूसरा आरा वयालीस हजार वर्ष के कालमान का प्रज्ञप्त है। समवाय-सुत्तं १३६ समवाय-४२
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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