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________________ एगूरणचत्तालीसइमो समवात्रो १. नमिस्स णं श्ररहश्रो एगुणवत्तालीसं आहोहियसया होत्या । २. समयखेत्ते णं एगुणवत्तालीसं कुलपव्वया पण्णत्ता, तं जहातीसं वासहरा, पंच मंदरा, चत्तारि उसुकारा । ३. दोन्चच उत्थपंचमसत्तमासु णं पंचसु पुढवीसु एगुणचत्तालीस निरयावाससय सहस्सा पण्णत्ता । ४. नाणावर णिज्जस्स मोहणिज्जस्स गोत्तस्स श्राउस्स--1 - एयासि रणं aroj कम्मपगडीणं एगुणवत्तालोसं उत्तरपगडीनो पण्णत्ताओ । उनतालीसव समवाय १. अतः नमि के उनतालीस सो अवधिज्ञानी थे । २. समय-क्षेत्र में उनतालीस कुल पर्वत प्रज्ञप्त हैं । जैसे कि. तीस वर्षधर, पांच मंदर और चार इपुकार 1, • ३. दूसरी, चौथी, पांचवीं, छठी और सातवीं-इन पांच पृथ्वियों में उनतालीस शत-सहस्र / लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं । ४. ज्ञानावरणीय, मोहनीय, गोत्र और आयुष्य - इन चार की उनतालीस प्रज्ञप्त हैं । : कर्म - प्रकृतियों. उत्तर - प्रकृतियां
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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