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________________ तनोवि य णं जोयणपणवीसाएणं ईती न भवइ । २८. मारी न भवइ । २६. सचक्कं न भवइ । ३०. परचक्कं न भवइ । ३१. इवुट्ठी न भवइ । ३२. श्ररणावुट्ठी न भवइ । ३३. दुभिवखं न भवइ । ३४. पुप्पण्णावि य णं उप्पाइया वाही खिप्पामेव उवसमंति । २. जंबुद्दीवे णं दीवे चउत्तीसं चक्क - वट्टविजया जहा - बत्तीसं पण्णत्ता, दो भररवए । महाविदेहे, ३. जंबुद्दीवे गं दीवे चोत्तीसं दीवेयड्डा पण्णत्ता । ४. जंबुद्दीवे णं दीवे उक्कोसपए चोत्तीसं तित्थंकरा समुप्पज्जति । ५. चमरस्स णं सुरिंद असुररण्णो चोत्तीसं भवणावासराय सहस्सा पण्णत्ता । ६. पढमपंच मछट्टीसत्तमासु - चउसु पुढवीसु चोत्तीसं निरयावास -सयसहस्सा पण्णत्ता । समवाय-सुतं १२७ योजन में ईति / भीति नहीं होती । २८. मारी नहीं होती । २६. स्वचक्र / सैन्य- विद्रोह नहीं होता । ३०. परचक्र / परकीय विद्रोह नही होता । ३१. अतिवृष्टि नहीं होती । ३२. अनावृष्टि नहीं होती । ३३. दुर्भिक्ष नहीं होता । ३४. पूर्वं उत्पन्न प्रौत्पातिक व्याबियां शीघ्र शान्त हो जाती हैं । २. जम्बुद्वीप - द्वीप में चौतीस चक्रवर्तीविजय प्रज्ञप्त है । जैसे किमहाविदेह में वत्तीस, दो भरत और ऐरवत एक ३. जम्बूद्वीप द्वीप में चौतीस दीर्घवताढ्य प्रज्ञप्त है । ४. जम्बूद्वीप द्वीप उत्कृष्टत: चौंतीस तीर्थकर समुत्पन्न होते हैं । ५. चमर असुरेन्द्र असुरराज के भवनावास चौतीस शन - सहस्र / लाख प्रज्ञप्त हैं ! ६. पहली, पांचवीं छठी और मातवींइन चार स्वियों में चौतीस शतसहस्र / लोस नरकावास प्रज्ञप्त है । समवाय-३४
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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