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________________ २६. सेहे राइणियस्स सेज्जा संथारगं पाएणं संघट्टित्ता, हत्येणं अणगुण्णवेत्ता गच्छति-पासायणा सेहस्स। ३०. सेहे राइरिणयस्स सेज्जा संथारए चिट्ठित्ता वा निसीइता वा तुयट्टित्ता वा भवइ-सायणा सेहस्स। ३१. सेहे राइणियस्स समासरणे चिद्वित्ता वा निसीइत्ता वा तुयद्वित्ता वा भवति प्रासायणा सेहस्स। ३२. सेहे राइणियस्स समासणे चिट्टित्ता वा निसीइत्ता वा तुट्टित्ता वा भवति प्रासायणा सेहस्स। ३३. सेहे राइणियस्स आलव माणस्स तत्थगते चिय पडिसुणित्ता भवइ-पासायणा सेहस्स। २६. शैक्ष रात्निक के शय्या-संस्तारक (विछौना) का पांवों से संघट्टन कर हाथ से अनुज्ञापित किये बिना जाता है, यह शैक्ष-कृत आशातना है। ३०. शैक्ष रानिक के शय्या-संस्तारक पर खड़ा होता है, बैठता है या सोता है, यह शैक्ष-कृत आशा तना है। ३१ शैक्ष रालिक से ऊंचे आसन पर खड़ा रहता है, वैठता है या सोता है, यह शैक्ष-कृत आशा तना है। ३२. शैक रात्निक के वरावर आसन पर खड़ा रहता है, बैठता है या सोता है, यह शैक्ष-कृत आशातना है। ३३. शैक्ष रात्निक के वक्तव्य का अपने आसन पर बैठे-बैठे ही प्रतिश्रोता होता है, यह शैक्ष-कृत आशातना है। २. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररणो चमरचंचाए रायहाणीए एक्कमेक्के वारे तेत्तीसंतेत्तीसं भोमा पण्णत्ता। २. चमर असुरेन्द्र असुरराज की चमर चंचा राजधानी के प्रत्येक द्वार पर तेतीस-तेतीस भौम/भवन हैं । ३. महाविदेहे णं वासं तेत्तीसं जोयणसहस्साई साइरेगाई विक्खभेणं पण्णत्ते। ३. महाविदेह-वर्ष/क्षेत्र तेतीस हजार योजन से कुछ अधिक विष्कम्भ/ विस्तृत प्रज्ञप्त है। ४. जया णं सुरिए वाहिराणं अंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता णं ४. जव सूर्य बाह्य-मंडल से अन्तर्वर्ती तीसरे मंडल में उपसंक्रमण कर समवाय-सुत्त समवाय-३३
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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