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________________ ६. सेहे राइणियस्स सपक्खं निसीइत्ता भवइ-आसा यणा सेहस्स। १०. सेहे राइणिएण सद्धि बहिया वियारभूमि निक्खंते समारणे पुवामेव सेहतराए पायामेइ पच्छा राइरिणएप्रासायणा सेहस्स। ११. सेहे राइणिएण सद्धि बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा निवखते समारणे तत्थ पुवामेव सेहतराए पालोएति, पच्छा राइणिएप्रासासणा सेहस्स । ६. शैक्ष रानिक के वरावर वैठता है, यह शैक्ष-कृत आशा तना है। १०. शैक्ष रात्निक के साथ वाहर विचार-भूमि/शौच-भूमि जाने पर शैक्ष पहले ही पाचमन/शौच कर लेता है, किन्तु रालिक उसके पश्चात्, यह शैक्ष-कृत आशातना है। ११. शैक्ष रालिक के साथ वाहर विहार-भूमि (स्वाध्यायभूमि) या विचार-भूमि जाने पर शैक्ष पहले (गमनागमन विषयक) आलोचना कर लेता है, किन्तु रात्निक उसके पश्चात्, यह शैक्ष-कृत आशा तना है। १२. शैक्ष को रात्निक द्वारा रात्रि या विकाल में यह पूछे जाने पर--'आर्य! कौन सोया है और कौन जगा है ?' शैक्ष जागृत होते हुए भी अनसुना कर देता है, यह शैक्ष कृत आशातना है। १३. रात्लिक को किसी से कुछ कहना है, किन्तु शैक्ष उससे पहले ही कह देता है, यह शैक्ष-कृत पाशातना है। १४. शैक्ष अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य लाकर पहले शैक्षतर के सामने [आहार-चर्या विषयक] बालोचना करता है, फिर १२. सेहे राइणियस्स रातो वा विधाले वा वाहरमाणस्स अज्जो के सुत्ते ? के जागरे ? तत्थ सेहे जागरमारणे राइणियस्स अपडिसुरणेत्ता भवति-पासायणा सेहस्स। १३. केइ राइणियस्स पुव्वं संल वित्तए सिया, तं सेहे पुवत रागं पालवेति, पच्छा राइणिए-पासायणा सेहस्स। १४. सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुत्वमेव सेहतरागस्स पालोएइ, पच्छा ममवाय-सुत्तं ११८ समवाय-३३
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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