SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७. वसाहे रगं मासे एगूरणतीसराइंदिश्राइं इंदियग्गेणं पण्णत्ते । ८. चंददिणे रगं एगूरगतीसं मुहुत्ते सातिरेगे मुहुत्तग्गेणं पण्णत्ते । ६. जीवे गं पसत्थज्भवसाणजुत्ते भविए सम्मदिट्ठी तित्थयरनामसहियाओ नामस्स कम्मस्स णियमा एगूणतीसं उत्तर पगडीओो निर्वाधित्ता वैमाणिएसु देवेसु देवत्ताए उववज्जइ । १०. इमीसे गं रयणप्पहाए पुढवीए श्रत्येगइयाणं नेरइयाणं एगूणतीसं पलिप्रोमाई ठिई पण्णत्ता । ११. हे सत्तमा पुढवीए प्रत्येगइयाणं नेरइयाणं एगूणतीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । १२. असुरकुमाराणं देवाखं प्रत्येगइयाणं एगूणतीसं पलिप्रोवमाई ठिई पण्णत्ता । १३. सोहम्मीसारणेसु कप्पेसु देवाणं प्रत्येगइयाणं एगूणतीसं पलिप्रोमाई ठिई पण्णत्ता । १४. उवरिम - मज्झिम - गेवेज्जयारणं देवारणं जहणणं एगूणतीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । समवाय-तं ७. वैशाख मास रात-दिन के परिमाण से उनतीस रात-दिन का प्रज्ञप्त है । ८. चन्द्र दिन मुहुर्त - परिमाण की अपेक्षा से उनतीस मुहुर्त से कुछ अधिक प्रज्ञप्त है | ६. प्रशस्त श्रध्यवसाय युक्त भविक सम्यग्दृष्टि जीव तीर्थकर नामसहित नामकर्म की नियमतः उनतीस प्रकृतियों का बंध कर वैमानिक देवों में देवत्व से उपपन्न होता है । १०. इस रत्नप्रभा पृथिवी पर कुछेक नैरयिकों की उनतीस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । ११. अधोवर्ती सातवीं पृथिवी पर कुछेक नैरयिकों की उनतीस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है | १२. कुछेक असुरकुमार देवों की उनतीस पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । १३. सौधर्म - ईशानकल्प के कुछेक देवों की उनतीस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । १४. उपरिम- मध्यम ग्रैवेयक देवों की जघन्यतः / न्यूनतः उनतीस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है | १०२ समवाय-२६
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy