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________________ ४. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु विमाणपुढवी सत्तावीसं जोयणसयाई वाहल्लेणं पण्णत्ता। ४. सौधर्म-ईशान कल्प में विमान की पृथिवी का सत्ताईस सौ योजन बाहुल्य प्रज्ञप्त है। ५. वेयगसम्मतबंधोवरयस्स णं मोहणिज्जस्स कम्मरस सत्तावीस कम्मंसा संतकम्मा पण्णत्ता। ५. वेदक सम्यक्त्व बन्ध से उपरत जीव की मोहनीय कर्म की कर्मसत्ता की सत्ताईस उत्तर प्रकृतियाँ प्रज्ञप्त है । ६. सावण-सुद्ध-सत्तमीए णं सुरिए सत्तावीसंगुलियं पोरिसिच्छायं णिवत्तइत्ता णं दिवसखेत्तं निवड्ढेमाणे रयणिखेत्तं अभिणिवड्ढेमाणे चारं चरइ। ६. श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन सूर्य सत्ताईस अंगुल की पीरुपी छाया से निवृत्त होकर दिवस-क्षेत्र की ओर निवर्तन करता हुआ रजनी-क्षेत्र की ओर प्रवर्तमान संचरण करता है । ७. इमीसे रणं रयणप्पहार पुढवीए प्रत्येगइयारणं नेरइयारणं सत्तावीसं पलिनोवमाई ठिई पण्णत्ता। ७. इस रत्नप्रभा पृथिवी पर कुछेक नरयिकों की सत्ताईस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है। ८. अहेसत्तमाए पुढवीए प्रत्येगइयाणं नेरइयारणं सत्तावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ८.अधोवर्ती सातवीं पृथिवी [महातमः प्रभा] पर कुछक नैरयिकों की सत्ताईस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। ६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं देवाणं सत्तावीसं पलिमोवमाई ठिई पण्णत्ता। ६. कुछेक असुरकुमार देवों की सत्ताईस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है। १०. सोहम्मीसारणेसु कप्पेसु अत्थेगई- याण देवारणं सत्तावीस पलिओव- माई ठिई पण्णता। १०. सौधर्म ईशान कल्प में कुछेक देवों की सत्ताईस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त, ११. मज्झिम - उवरिम - गेवेज्जयाणं देवाणं जहणेण सत्तावीसं सागरोवमाइ ठिई पण्पता। ११. मध्यवर्ती उपरिम अवेयक देवों की जघन्यतः न्यूनतः सत्ताईस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। समवाय-सुत्तं • समवाय-२७
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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