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________________ चउव्वीसइमो समवाश्र १. चउदीसं देवाहिदेवा पत्ता, तं जहा - उसमे अजिते संभवे अभिनंद सुमती पमम्प सुपासे चंदप्प सुविही सीतले तेन्जसे वासुपुज्जे विमले अणते घम्मे संतो कुंथू अरे मल्ली मुणिसुत्वए गमी रिट्ठमी पासे वद्धमाणे । २. चल्लहिमवंतसिहरीणं वासहरपत्वयाणं जोवान चढवीतं चडवीतं जोयणतहत्साई गवबत्तीते जोयणसए एवं च प्रट्ठत्तीस नागं जोयणत्स किचिविसेसाहिश्रश्र श्रायामेणं पण्णत्तानो । ३. चडवीतं देवठाणा सइंदया पण्णत्ता, सेसा अहमिंदा -अनिंदा पुरोहिया | ४. उत्तरायणमते पं तुरिए चवोसंगुलियं पोरिसियछायं वित्तइत्ता पंगिकृति । ५. गंगातिधूम्रो नं महापईश्री पवहे सातिरेगे चडवीसं कोसे वित्वारेणं पन्नताओ । समदाय -सुतं ६४ चौबीसवां समवाय १. देवाधिदेव चौबीस प्रज्ञप्त है । जैसे कि ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, नुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्यु, अर, मल्ली मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व और वर्तमान | २. मुल्ला / हिमवन्त और शिखरी वर्षचर पर्वतों की जीवा / परिवि चौवीसचौबीस हजार नौ सो बत्तीस योजन और योजना के तीन भागों में ने एक भाग ( अर्थात् २४९३२६ योजन) से कुछ अधिक लम्बी प्रज्ञप्त है । ३. इन्द्र -सहित देवों के स्थान चौबीस प्रजप्त हैं। शेष अहमिन्द्र, इन्द्ररहित, पुरोहित-रहित हैं । ४. उत्तरायणगत सूर्य चौवीस अंगुल की पाँरुपी छाया पार कर निवृत्त होता है । ५. गंगा-सिन्धु महानदियों का प्रवाह चौवोन कोन से अधिक विस्तृत प्रज्ञप्त है। सनवाय- २४
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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