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________________ ( १६ ) समाधान - आप भी जब तक निश्चयनय से प्ररूपित वस्तु को न पहिचाने तब तक व्यवहार मार्ग से वस्तु का निश्चय करे इसलिये निचली दशा में अपने को भी कार्यकारी है परन्तु व्यवहार को उपचार मात्र मान कर उसके द्वारा वस्तु को ठीक प्रकार समझे तव तो कार्यकारी हो परन्तु यदि निश्चयवत् व्यवहार को भी सत्यभूत मानकर 'वस्तु इस प्रकार ही है' ऐसा श्रद्धान करे तो उलटा अकार्यकारी हो जावे । यही पुरुषार्थसिद्धय पाय की गाथा नं० ६-७ में कहा है । इस प्रकार उपर्युक्त प्रकार से निश्चय, व्यवहार के स्वरूप को भले प्रकार यथावत् समझकर, चारों अनुयोग के शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिये । ग्रन्थान्तरों में आगम अभ्यास की पद्धति श्रीमत् जयसेनाचार्य ने समयसार गाथा नं० १२० की टीका में यही पद्धति अपनाने का आदेश किया है, यथा ' इति शब्दनयमतागमभावार्थाः व्याख्यानकाले यथासम्भव सर्वत्र ज्ञातव्याः अर्थ - शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ तथा भावार्थ-व्याख्यान के अवसर पर सर्वत्र जान लेना । उपर्युक्त पद्धति को ही पंचास्तिकायकी गाथा नं० २७ को टीका में उक्त आचार्य महाराज ने तथा ब्रह्मदेव सूरि ने परमात्मप्रकाश श्लोक नं० १ को टीका में तथा वृहद् द्रव्यसंग्रह की गाथा नं० २ को टीका में भी बताया है ।
SR No.010826
Book TitleShastro ke Arth Samazne ki Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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