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________________ ४६ [ ६-१७४ गिहिणो गिहिमज्झा वसन्ताणं अन्नउत्थिए अट्ठेहि य हेऊहि य पासणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य निष्पट्टपसिणवागरणे करेन्ति, सक्का पुणाई, अजो, समणेहिं निग्गन्थेहिं दुवाल - सङ्गं गणिपिडगं अहिजमाणेहिं अन्नउत्थिया अद्वेहि य जाव निष्पट्टपसिणा करित्तए ॥ ९७४ ॥ . ar णं समणा निग्गन्था य निग्गन्थीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स " तह " त्ति एयमहं विणएणं पंडिसुन्ति ॥ १७५ ॥ तर णं से कुण्डकोलिए समणोवासए समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २ ता पसिणाई पुच्छर, २त्ता अट्ठमादियइ, २ चा जामेव दिसिं पाउन्भूए, तामेव दिसिं पडिगए ॥ १७६ ॥ सामी बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ १७७ ॥ उवासगदसासु तए णं तस्स कुण्ड कोलियस्स समणोवासयस्स वहूहिं सील जाव भावेमाणस्स चोइस संवच्छराई वीइक्कन्ताई । पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अन्तरा वट्टमाणस्स अन्नया कयाइ जहा कामदेवो तहा जेटूपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसा - लाए जाव धम्मपणत्ति उवसंपजित्ताणं विहरइ ॥ एवं एक्कारस उवासगपडिमाओ ॥ १७८ ॥ तव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणज्झए विमाणे जाव अन्तं' काहिइ ॥ १७९ ॥ ॥ निक्खेवो ॥ छटुं कुण्ड कोलियज्झयणं समत्तं ॥
SR No.010825
Book TitleUvasagdasao
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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