SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उवासगदसासु [१-११८ "हन्ता, अस्थि "॥११८॥ "अजो" इ समणे भगवं महावीरे वहवे समणे निग्गन्थे य निग्गन्थीओ य आमन्तेत्ता एवं वयासी। "जइ ताव, अजो, समणोवासगा गिहिणो गिहिमज्झा वसन्ता दिव-. माणुसतिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्म सहन्ति जाव अहियासेन्ति, सका पुणाई, अजो, समणेहिं निग्गन्थेहिं दुवालसङ्गं गणिपिडगं अहिजमाणेहिं दिव्वमाणुसतिरिक्खजोणिए सम्मं सहित्तए जाव अहियासित्तए" ॥११८॥ तओ ते वहवे समणा निग्गन्था य निग्गन्थीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स "तह" ति एयमटुं विणएणं पडिसुणन्ति ॥ १२०॥ तए णं से कामदेवे समणोवासए हट जाव समणं भगवं महावीरं पसिणाई पुच्छइ, अट्ठमादियइ, समण भगवं महावीरं तिक्खत्तो वन्दइ नमसइ, २त्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए ॥१२॥ तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ चम्पाओ पडिणिक्खमइ, २ ता वहिया जणवयविहारं विहरइ ॥१२२॥ तए णं से कामदेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपजित्ताणं विहरइ ॥१२३॥ तए णं से कामदेवे समणावासए वहहिं जाव भावेत्ता वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एकारस उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं फासत्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सर्द्धि भत्ताई अणसणाए छेदत्ता, आलोइयपडिकन्ते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा,
SR No.010825
Book TitleUvasagdasao
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy