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________________ ( १८ गुरु मगनं चरण सुपसाय ॥ पायो रत्नत्रय सुखदाय || माधव हाथ जोड शिर नाय करता सब सँतन सों अरजी | सु- |७|इति । ॥ अथ गजल रेखता में ॥ ५ } ॥ अविद्या प्रेतनी ने द्वद कैसा मचाया. हैं. ॥ झुला के सुपथ से चैतन कुपथ मांहीं भ्रमाया है || टेक | सच्चिदानंद प्रभुतजकें । उपल पूजन चलाया है ।। गोरि गोवर गधाघूरों पेड़ पानी पुजाया ॥ अ० ॥ १ ॥ पुत्रं के. काजं वलि देना महिष मेंढा मुरग अजकी || पतीको छोड पर पति से पुत्र लाना बताया है । अंगाभोग भोगी वने जोगी दया. की रीत जांने ना ॥ भँग गांजा चरस पोके S
SR No.010824
Book TitleShrimadvirayanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages57
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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