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________________ (५८ :) है । खेद, दुःख और पाप का कारण है, मिथ्यात्व है । वास्तवमें पाप तो अन्तरंग आत्मा से काम क्रोधादि कपायें त्यागने और विषयों से विरक्त होने से ही छूटेंगे, इस लिये पापों से छुटकारा पाना है, तो अपनी श्रद्धा को सुधार कर हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और अतिषय परिग्रह संग्रह की, गृद्धता या ममत्व को त्याग करो, जुवा, मांस, दारू, शिकार आदि व्यसनों को छोड़ो, काम, क्रोध, रागद्वषादि अन्तरङ्ग शत्रुओं को विजय करो, तात्पर्य-मथ्यात्व, अन्याय व अभक्षका त्याग करो, नहाने से पाप छट जायगे, इस भोले भाव में पड़े रहकर यह मनुष्य जन्म का सुवर्स अवसर मत खोदेओ। कितने ही भोले प्राणी मक्रादि संक्रांतों में, चन्द्र सूर्य ग्रहण में, एकादशी, पूर्णिमा, सोमवती अमावस, होली, दिवाली, कार्तिक व माघ महिनों में इत्यादि कितने ही अवसरों में खास तौर से इन नदियों व समद्र में न्हाने कोदूरसे जातेहैं, इन नदियों के किनारों के नगरों की बियांतो रात्रि के चार २ या तीन २ बजे से उठ २ कर इसी अन्ध श्रद्धा के वश होकर नहाने चल देती हैं और बहुधा उन दुष्ट नर व्याघों की शिकार होकर अपना धन धर्म और जीवन सर्वस्व खो बैठती हैं, जो इसी के लिये कोई भिग्वारी के रूप में कोई पण्डों व पुजारियों के रूप में अथवा अन्यान्य ऐसे ही छद्म भेषों में छिपे फिरते रहते हैं और अवसर पाकर छापा मार देते हैं, ऐसे चरित्र प्रायः आये दिन सुना ही करते हैं, फिर भी. मूढ़तावश वही बेढङ्गी चाल चली जाती है। कोई २ सूर्य, गुरु, चन्द्र, मंगल, बुद्ध, शुक्र, शनि, राहु, केतु आदि ग्रहों का जप कराते और तरह २ का दान जोषी आदि को देते हैं, कि ये गृह जो हमारी राशि पर पाकर क्रूर . .
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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