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________________ करने के लिए कारण स्वरूप तदाकार दिगम्बर जैन, वैराग्यमयी, शान्त मूर्तिः पापाण या धातु की बनाकर रखी जाती है और उसी के द्वारा अवलम्वन लेकर अपने साध्य अहंत व सिद्धपद की सिद्धि की जाती है। बस ! यही अभिप्राय जैन प्रतिमा के पूजने मानने का है, इसलिए यदि प्रतिमा की विधि बन सकती है, तो दिगम्बर जैन प्रतिमा ( मूर्ति) ही की, अन्य रागादि भाव दर्शाने वाली प्रतिमाओं की नहीं, ऐसा ही दृढ़ निश्चय करके अन्य सब कल्पनाओं का त्याग करके केवल एक वीतराग सर्वज्ञ अहंत प्रतिमा का अवलम्बन लेकर अपना आत्महित करना चाहिए। अपर कहे अनुसार देव मूढ़ता छोड़ कर लोकमढ़ता भी छोड़ना चाहिए, इसका लक्षण स्वामी समन्तभद्राचार्य महाराज ने यों कहा है आपगासागरस्नानमुच्चयः सिकताश्मनाम् । गिरिपातोऽग्निपातश्च लोकमृदं निगद्यते ॥ (२० क० श्रावका०) नदी, समुद्रादि जलाशयों में धर्म समझ कर नहाना, पत्थरों के ढेर करना, पर्वतों पर से गिरना या अग्नि में पड़ कर मर जाना इत्यादि । कार्य बिना बिचारे लोक के देखा देखी धर्म समझ कर या इस लोक परलोक सम्बन्धी तुखों की इच्छा करके करना लोक मढ़ता है।
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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