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________________ ( ५१ ) • वाले सभी पूण्य होना चाहिए और तब कुछ दोष भी संसार में नहीं रह जायेंगे, क्योंकि ये बातें तो न्यूनाधिक अंश में पाई जाती हैं और इसलिए भी इन्हीं गुणों से विशिष्ट किन्हीं अचेतन मूर्तियों की आवश्यकता ही नहीं, क्योंकि सभी चेतन आत्माएँ इन गुणों से विशिष्ट नर पशु रूप में देखी जाती हैं और जिन में इन गुणों की जिन अशों में कमी होवे, सो भी परस्पर उपदेश व प्रदेशों से पूरी की जा सकती हैं, जैसा कि प्रायः होता भी है। . परन्तु इन बातों की शिक्षा देने के लिए न कोई विद्यालय है और न पठन क्रम ही आज तक बनो, इससे विदित होता है, कि ये बातें गुण रूप अनुकरणीय नहीं हैं, किन्तु त्याज्य हैं। इन बातों की निन्दा प्रत्येक धर्म के सभी आचार्यों ने की है और जितने २ अंश में जिन २ महात्माओं में इन बातों की कमी पाई गई है, वे वे महात्मा उतने २ अशों में पूज्य माने गए हैं, आज केवल भारत ही नहीं, किन्तु विदेश भी महात्मा गान्धी को संसार का एक महान् अवतार मान रहे हैं, सरकार स्वयं उनका आदर करती है, सो क्यों ? इसीलिये न कि वे अहिंसा के उपासक हैं, काम क्रोध लोभ मान माया द्वेषादि कषायें उन्होंने बहुत अशों में दमन करदी हैं, वे अपने आपको संसार के सब से तुच्छ मनुष्य अर्थात् सबका सेवक मानते हैं, शत्रु का भी भला चाहते हैं, दीन दुखी देश के लिए अपना सर्वस्व त्याग कर बैठे हैं, इसीलिए वे बड़े होगए हैं, साधु महात्माओं की सच्ची पहिचान ही यही है, कि उन में स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र आदि इन्द्रियों के विषय स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्दादि में इष्टानिष्ट कल्पना नहीं रहती, मन' पर उनका अंकुश.
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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