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________________ शक्ति है, ये तो अन्य प्राणियों द्वारा उपयोग में आने वाले पदार्थ हैं। इन वस्तुओं का सदुपयोग करना चाहिये | बस ! यही 'पुजा है जैसे गोबर किसी मनसूत्र आदि अशुचिस्थान को लीपने के काम में लेने से वहाँ की दुर्गन्ध हट जाती है, खुदी हुई मिट्टी की जमीन गोबर या लीद मिट्टी के साथ मिलाकर लीपने. से जमीन में धूल नहीं उड़ती, कपड़े खराब नहीं होते इत्यादि । उपयोग करने के बदले कोई उसे पूजने लगे, देवता मान लेवे. या पवित्र मानकर खावे, वा देव को चढ़ावे, तो वह मूर्ख ही कहावेगा, पापी ही रहेगा, इसी प्रकार गज, बांट. राजू आदि का उपयोग वस्तुओं की माप तोल करने में होता है, उनसे सोना, 'चांदी आदि माप तोल कर लेते हैं, तात्पर्य यह कि न हम ठगाये जांय और न दूसरों को ठगे, ठीक दाम पर बराबर बस्तुएं लेवें देवें, सो कोई उन गज, तराजू, बांट आदि की पूजा करता रहे और लैन दैन धंधा न करें, तो कभी धन लाभ न होगा, ऐसा करने वाला मूर्ख ही कहावेगा. अथवा कोई पोथी पुस्तकों की 'पूजा तो करे, परन्तु पढ़े नहीं, तो वह मूर्ख ही रहेगा, मात्र पुस्तक पूजने से ज्ञान तो न आवेगा । पुस्तक ज्ञान के साधनों में से एक साधन है, सो उसको यत्न से रखना, ताकि वह फट न जाय, मेली न हो जाय, या कोई चुरा न ले, तथा. उस पुस्तक को पढ़ना, यही पूजा है । तब कोई कहेगा कि शास्त्रों की पूजा नमस्कार क्यों की जाती है, तो उत्तरं यह है कि उनमें सत्पुरुषों उपदेशों का वचनों का लिंपिरूप से संग्रह है सो उन सच्चेमोक्षमार्ग के उपदेशों को सत्पुरूषों के वचनों को ही पूजा जाता है कि कागज कलम स्याही, या वर्णमालादि किसी प्रकार की लिपि को 'युजा जाता है । रुपया, मुहर पूजने से रूपया, मुहर या दूध दही
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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