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________________ ( १६ ) वीतराग - विज्ञानता ही इनका लक्षण है, सो जहाँ जहाँ जितने जितने अंशों में यह मिले, वहाँ वहां ही मोक्ष मार्ग है और जहाँ जहाँ त्रिषय कषायों के भाव पाये जानें, वहां वहां संसार अर्थात् दुःख का मार्ग है, इसलिए अपना देव, शास्त्र तथा गुरु समय इस बीतराग विज्ञानता ( अहिंसा) को अवश्य ही देख लेना चाहिए और यह वीतराग विज्ञानता केवल बाह्य रूप में ही नहीं मिलेगी, इसलिए केवल बाहर के रूप में ही मोहित होकर ठगाना नहीं चाहिए, किन्तु भले प्रकार परीक्षा करके ही - ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि सभी चमकने वाले पीले पदार्थ सोना नहीं होते, इसलिये चतुर पुरुष कसौटी पर कस कर ही सोना लेते हैं, ठगाते नहीं हैं । यह ध्यान रहे, कि जैसा खरा खोटा सोना होंगा, उसके वैसे ही आभूषण बनेंगे। इसी प्रकार जैसे देव शास्त्र व गुरुयों का सम्बन्ध मिलेगा, वैसे ही फल की प्राप्ति होगी अर्थात् सच्चे वीतरागी देव शास्त्र गुरु, मिलें, तो सच्च े मोक्ष मार्ग की सिद्धि होगी और रागी, द्व ेषी, देव, शास्त्र, गुरु मिले, तो अनन्त दुःखों का आगार संसार ही बढ़ेगा, इसलिए जब कि एक पैसे की हण्डी भी खूब ठोक बजा कर, परीक्षा करके लेते हैं, जो अल्प मूल्य की अल्प प्रयोजन सिद्ध करने वाली वस्तु है, तो देव, शास्त्र, गुरु- जिन का क्रि. इमारे उभयलोक से सम्बन्ध हैं, वास्तव में जिन के ऊपर ही हमारा सर्वस्व हित निर्भर हैकी परीक्षा करके ग्रहण करना यह हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए । इसलिए इनका विशेष स्वरूप अर्थात् पहिचान बताते हैं । यद्यपि प्रथम देव ( परमात्मा जो हमारा लक्ष्य है ) की स्वरूप कहना चाहिए था, परन्तु ऐसा न करके यहां केवल उप 4
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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