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________________ ( ६०० ) नाम कर्म कहते हैं ५ प्रकार के शरीरों की अपेक्षा से शरीर के. नाम कर्म के भी ५ भेद होते हैं. ४ उपांग- जिस कर्म के उदय से जीव को हस्त आदि उपांग माप्त होते हैं, उसको उपांग नाम कर्म कहते हैं तीन उपांग की अपेक्षा से इस के ३ भेद होते हैं. ५ बंधन - जिस कर्म के उदय से जीव के श्रदारिक आदि शरीर के पुद्गलों का परस्पर बंधन होता है उसको बंधन नाम कर्म कहते हैं पांच प्रकार के बंधन की अपेक्षा से बंधन नाम कर्म के ५ भेद होते हैं. " ६ संघातन - जिस कर्म के उदय से औदारिक आदि शरीर के पुदगल संगठित होते हैं उसको संघातन नाम कर्म कहते हैं पांच प्रकार के संघातन की अपेक्षा से ५ प्रकार के संघातन नाम कर्म होते हैं. 67 $5 ७ संघयण - जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में हड्डियों के जोड़ परस्पर मिलते हैं उसको संघयण नाम कर्म कहतें हैं ६ प्रकार के संघयण की अपेक्षा से इसके ६ भेद होते हैं. ८ संस्थान - जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर को शुभा शुभ आकार होता है उसको संस्थान नाम कर्म कहते है ६ प्रकार के संस्थान की अपेक्षा से इसके भी भेंट है। ""
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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