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________________ . . . .. (५८) अशुभ, दुभाग्य, दुस्वर, अनादेय और अपयश इन छ: को मिलाकर अस्थिर षटक कहते हैं. ..' स्थावर चतुष्क-प्रथम चार पाप प्रकृतियां अर्थात् स्थावर, . सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण इन चार को मिला कर स्थावर, ' चतुष्क कहते हैं।. . .: ...... ... : .:..:. . : .. सूक्ष्मत्रिक-सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण इन ३ प्रथम स्थावर पाप प्रकृतियों को मिलाकर सूक्ष्मत्रिक कहते है। .. • सौभाग्य त्रिक-सौभाग्य, सुस्वर और आदेयः इन तीनों वस पुण्य प्रकृतियों को सौभाग्यत्रिक कहते हैं। वर्ण चतुष्क-वर्ण गंध, रस और स्पर्श इन चारों को मि: लाकर वर्ण चतुष्क कहते हैं ! ................... अगुरु लघु चतुष्क-अगुरु लघु उपघात पराघात और . उच्छवास इन ४ प्रत्येक प्रकृतियों को मिलाकर - अगुरु लघु . चतुष्क कहते हैं।":. :: : प्रसद्विक त्रस और वादर दोनों को मिलाकर त्रसद्विक कहते हैं। : : :: ..... ... .. ... त्रस त्रिक-वस वादर और पर्याप्त इन तीनों को मिलाकर .. त्रसत्रिक कहते हैं 1.... ... .. ............ ... .. त्रस पटक-त्रस, वादर, पर्याप्त, प्रत्येक स्थिर और शुभ इन छ.को मिलाकर त्रस पटक कहते हैं .....: . . . .
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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