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________________ (४४) .... (ग) जो. पक्खी प्रतिक्रमण करके क्षमा न मांगी. हो . और न तमा की हो और द्वेष ही रक्खा हो तो · सर्व विरति धर्म नहीं मिल सका है और मृत्यु होने पर प्रायः मनुष्य गति में आता है. ऐसे क्रोधादि प्रत्याख्यामी होते हैं । . . . . (घ ) जो प्रातः और सांयकाल को दोनों समय प्रतिक्रमण करके क्षमा न मांगी हो और न मा की हो और द्वेष ही रक्खा . हो तो यथाख्यात चारित्र प्राप्त नहीं होता है और मृत्यु हो तो प्रायः देवलोक में ही जाता है ऐसे क्रोधादि को संज्वलन कपा यादि समझना चाहिये किंतु जो निरंतर प्रति दिन दोनों समय प्रातः.और सायं प्रतिक्रमण में क्षमा किया करे तो यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति होती है । ...... .... अतएव प्रत्येक का कर्तव्य है कि अपने पापों की शुद्धि के लिये नित्य दोनों समय प्रतिक्रमण कर. अपने अपराधों की सर्व जीवों से क्षमा मांग कर द्वेष दूर करना चाहिये और और सर्व जीवों के अपराधों की क्षमा करके उनके हृदय को शांत करना चाहिये. ': यदि क्षमा देने वाले उपस्थित न हो; बा देने योग्य न हों वा जान बूझ कर कोई.क्षमा न करते हों तो देव गुरु. की साक्षी से कोमल हृदय से पश्चात्ताप पूर्वक अपने पापों की निंदा गाँ करके क्षमा मांगना चाहिये.
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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