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________________ (४२) क्षा से तो दशन मोहनीय की ३ और चारित्र मोहनीय की २५ इस प्रकार २८ होती हैं दूसरी अपेक्षा से चार अनंतानुवंधी की और तीन दर्शन मोहनीय में ऊपर वतलाई हुई इस प्रकार सात दर्शन मोहनीय की और ४ अनंतानुबंधी की कम करदेने एर २१ चारित्र मोहनीय की इस प्रकार कुल २८ प्रकृति होती हैं. कषायों के १६ भेद.. . १ अनंतानबंधी क्रोध. २ अनंतानबंधी मान. ३ अनंता. नुबंधी माया, ४ अंनंतानुबंधी लोभ, ५ अप्रत्याख्यानी कोष, ६ अप्रत्याख्यानी मान, ७ अप्रत्यारल्यानी माया, ८ अप्रत्याख्यानी लोभ, 8 प्रत्याख्यानी क्रोध, १० प्रत्याख्यानी मान, ११ प्रत्याख्यानी माया, १२ प्रत्याख्यानी लोभ, १३ संज्वलन क्रोध, १४ संज्वलन मान,१५ संज्वलन माया, १६ संज्वलन लोभ. प्रथम ४ अनंतानुवंधी प्रकुतियां सम्यक्त्व की वाधक हैं. , द्वितीय ४ अप्रत्याख्यानी प्रकृतियां, देशविरति श्रावकके गुणों की वाधक हैं. ततीय ४ प्रत्याख्यानी, प्रकृतियों से सर्व विरति सराग संयम की प्राप्ति में वाधा आती है. चतुर्थ ४ संज्वल की प्रकृतियों से यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति रुकती है.
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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