SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३६) इसका काल दो से लेकर नो श्वासोश्वास प्रमाण है पश्चाह चाहे मिथ्यात्व रहे वा सम्यक्त्व रहे। __. मिश्रमोहनीय को समझाने के लिये यहां पर नारियल का दृष्टांत बतलाते हैं जैसे कि यदि किसी द्वीप में नारियल अतिरिक्त किसी भी प्रकार के अन्न फलादिक न तो उत्पन्न होते हैं और न मिल सक्ते है तो उस द्वीप के निवासी नारियल के अतिरिक्त अन्नफलादि से न तो प्रेम रखते हैं और.न द्वेष रखते हैं इसही प्रकार मिश्रमोहनीय वाला वीतरागभाषित धर्मको न तो सत्य मानता है और न असत्य मानता है अथवा कभी कुछ सत्य भी मानता है वा कुछ असत्य भी मानता है। सिद्धांत वालों और कर्म ग्रन्थ वालों में किसी २ स्थान में विषमवाद आता है क्योंकि पूर्वो के विच्छेद के पश्चात् अग्यारह अंग शेष रहे तो पूर्वाचार्यों ने कर्म ग्रन्थ को उपयोगी समझ इसका उद्धार किया इसलिये जो सिद्धांतिक मत में और कर्म ग्रन्थ में कहीं कहीं भेद पड़ता है उसको बहुश्रुत गीतार्थों से समझना चाहिये। ___ सिद्धान्तिक मत से सम्यक्त्व से गिर मिश्र में नहीं आता है किन्तु मिथ्यात्व से मिश्र में आता है क्योंकि सम्यक्त्व की उतमता का अनुभव होने पर यदि उसको त्यागकर दे तो उसको मिथ्यात्वी ही कहना चाहिये । : .
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy