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________________ (१२) सृत मति ज्ञान के भेद कहते हैं । इस प्रकार मतिज्ञान के २८५४ बत्तीस और ३३६+४ तीन सो चालीस भेद होते हैं। :: श्रुत ज्ञान के चौदह भेद होते हैं और वीस भेद भी होते हैं. अक्खर सन्नी सम्म, साईनं खलु सपज्झ वसिघ्रं च गमित्रं अंगः परिह, सत्तविए ए सपडिवक्खा ॥६॥ ...: श्रुत ज्ञान के.१४ भेद । ..... . १ अक्षर श्रुत, २ अनक्षर श्रुत, ३ संज्ञीश्रुत, ४ असंज्ञीश्रुत, ५ सम्यक् श्रुतं, ६ असम्यक् श्रुत, ७ सादिश्रुतं, ८ अनादिश्रुत, ९. सपर्यवसित श्रुत १० अपर्यवसित श्रुत ११ गमिकचैत १२ अगमिक श्रुत १३. अंगप्रविष्ट Qत. १४ अंगवाह्य श्रुतं । , " . : ... १ अतरश्रुत-अक्षर ३ प्रकार के होते हैं संज्ञा अक्षर व्यंजन . अक्षर और लब्धिक्षर। . ........ : संज्ञाअक्षर-जो अक्षर लिखने के कार्य में लिये जाते हैं। ___ व्यंजन अक्षर-जो बोलने के कार्य में आते हैं। ... ... .' लब्धि अंतर-आत्मा में जो संज्ञा और व्यंजन अतरों का ज्ञान होता है... ...... .. ::::::::...: "संज्ञा और व्यंजन अक्षरों को द्रव्यश्रुतं भी कहते हैं । 'लब्धि अक्षरों को भावभुत भी कहते हैं।
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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