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________________ अनुष्य शरीर पर तेल लगाकर जावे और उसमें कुछ समय तक ठहरे तो कोयले की सूक्ष्म रज (का रस) उसके शरीर पर चिपक ही जाती है ऐसे ही मिथ्यात्वादि अनादि ५७ बंध के हेतुओं से आत्मा के असंख्यात आत्म प्रदेशों पर अनंतानंत कर्म वर्गणा रूपी जड़ परमाणुओं के समूह लगजाते हैं किन्तु विशेष ता यह होती है कि जिस प्रकार दूध में पानी और लोहे में अग्नि पूर्ण रूप से मिल जाया करते हैं उसी ही प्रकार कमे प्रदेश श्रात्म प्रदेशों से सर्वोत्म प्रदेशों में मिलजाते हैं और उनका फल आत्मा को अनुभव करवाते हैं जो अपने को भी प्रत्यक्ष सुख दुःख का अनुभव होता है । ___यह कर्म सम्बन्ध अनादि है। भव्य जीव कर्म सम्बन्ध छूट जाने पर मुक्ति में जावेगा इस अपेक्षा से जीव का कर्म सम्बन्ध अनादि सान्त है और अभव्य जीव कदापि कर्ममुक्त न होगा इस अपेक्षा से जीव का कर्म सम्बन्ध अनादि अनन्त है। जिस प्रकार सुवर्ण के साथ मिट्टी, पाषाणादि का सम्बन्ध अनादि होने पर भी अग्नि के तीव्र संयोग से सुवर्ण शुद्ध हो जाता है इस ही प्रकार जीव के साथ कर्मों का सम्बन्ध अनादि होने पर भी तपश्चर्यादि और शुक्ल ध्यानादि से जीव शुद्ध अर्थात मुक्त होजाता है। जैसे वीज के अग्नि में जल जाने से उससे वृक्ष उत्पन्न नहीं होसक्ता वैसे ही जीव के कर्मों का तपश्चर्यादि
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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