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________________ ( १०६ ) शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श अनुकूल देखकर आसक्त होने से ईर्ष्या करने से कपट करने से असत्य कहने से पर स्त्री गमन करने से स्त्री वेद कर्मों का बंधन होता है.. सरल परिणाम से, स्वदारा संतोष से, ईपी त्याग से, मंद कपायों से, पुरुष वेद कर्मोंका बंधन होता है. तीव्र कषायों से दूसरों का ब्रह्मचर्य खंडन कराने से, तीव्र विपय अभिलापाओं से, पशुओं के हनन से, चारित्र धारी पुरुषों को असत्य दोपादि देने से, असाधुओं को साधु कहने से नपुंसक वेद कर्मों का बंधन होता है. आयु कर्मबंधन के मुख्य कारण । चक्रवर्ती राजा की ऋद्धि में लीन होकर अधर्म करने से अनेक जीवों को कष्ट पहुंचाने से, हत्या करने से, अविरति होने से दुष्परिणामी होने से मद्यमांसादि भक्षण आदि सप्तंव्यसन से, और कृतघ्न, विश्वास घातक, मित्रद्रोही आदि होने से और अधर्म प्रशंसक होने से नरक आयु कर्मों का बंधन होता है. 1. तिरिया गूढहि मणुस्सा । पयई त मज्झिम गुणो ॥ ५८ ॥ गूढ हृदय की शठता से ऊपर से मधुर भीतर की भयंकरता यो, सढो ससल्लो तहा कसात्रो, दाण रूई
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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