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________________ (१०५) आठ कर्म प्रकृतियों के बंधन के स्थूल कारण, पडिणी अत्तण निन्हव, उवधाय पोस अंतराए) । अचासायण याए,आवरण ढुंगंजिश्रो जयई ।। ५४॥ कर्म बंधन के मुख्य कारण ४ होते है मिथ्यात्व, अविरति, कपाय और योग । __ इन का वर्णन चतुर्थ कर्मग्रन्थ में विस्तार से करेंगे किन्तु यहां पर भी मुख्य २ कारणों को संक्षेप से बतलाते हैं। ज्ञाना वरणीय और दर्शना वरणीय कर्म बंधन के मुख्य कारण । ज्ञानी साधु, श्रावक, धर्मोपदेशक लौकिक विद्यागुरू और ज्ञान उपकरण पुस्तक पट्टी आदिका अविनय करने से, विद्या गुरू का नाम बदलने से, ज्ञानी और ज्ञान उपकरण से द्वेष करने से अरुचि करने से विद्यार्थी ( पढ़ने वाले) को भोजन पान में, आवश्यकीय स्थानादि के प्रयत्न में बाधा पहुंचाने से, विद्यार्थी को अन्य कार्य में लगा पढने में विघ्न करने से, विद्यार्थियों को खेदोत्पादक वचन कहने से अकाल में स्वाध्याय करने से, योग उपधान अर्थात् सूत्रादि पढते समय यथोचित् तपस्या न करने से, वर्जित दिवस को स्वध्याय करने से, ज्ञान उपकरण सहित लघुशंका वा दीर्घ शंका वा काम चेष्टा करने से ज्ञान उपकरण को पैर का स्पर्श करने से वा थूक, श्लेष्य
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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