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________________ ( ८७ ) वचन निर्दोष परस्पर विरोधी और प्राणी मात्र के. हितकारी हैं जिनको कि जैनसूत्र अर्थात् जिनेंद्र भगवान कथित शास्त्र कहते हैं इस ईश्वरीयज्ञान को गुरुगम से अवश्य पढना चाहिये.. ___अंगोवंग नियमणं, निम्माणं कुणइ सुत्तहारसमं, उवधाया उव हम्मइ, सतणु अवयवलंबि गाईहि ॥४८॥ : ... निर्माण नाम कर्म. जिस कर्म के उदय से शरीर के भाग यथोचित् युक्त होकर शरीर का निर्माण होजाता है उसको निर्माण नाम कर्म कहते हैं जैसे कि-खाती द्वारा लकड़ी के भाग यथावत् युक्त होकर कुरसी बन जाती है... ... .... उपघात नाम कर्म. . . . . . . ३. जिस कर्म के उदय से 'जीव अपने ही अंगों के कारण दुःख पाता है उसको उपघात नाम कर्म कहते हैं जैसे कि किसी को एक अधिक जीभ वा अंगुली हो चोर दंत हो वारसौली हो. ..बिति चउ पणिदि तस्सा, बायरो बायरा जित्रा थूला, निश्र निथ पज्झति जुश्रा, पज्जता लद्धि करणेहिं ॥४६॥ . . . . . .:: :: : 'अव नस दशक और स्थावर दशक का साथ साथही वर्णन करते हैं,
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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