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________________ ( ५ ) कर्म से शीतप्रकाश निकलता है इस ही तरह खर्जवा (आगिया) आदि जन्तुओं के शरीर से और अनेक वनस्पति के जीवों के . शरीर से उद्योत. नाम कर्म से शीतप्रकाश निकलता हैं । अंगं न गुरु न लहुअं, जायह जीवस्स अगुरु लहु उदया, तित्थे तिहुं अस्सवि पुज्कोसे उदय केवलिणो ॥ ४७ ॥ गुरु लघु कर्म का स्वरूप. जिस कर्म के उदय से शरीर न तो इतना भारी हो कि हलचल न सके न इतना हलका हो कि वायु में उड़जावे किंतु मध्यस्थ हो जिससे इच्छानुसार गमन कर सके उस कर्म को अगुरु लघु कर्म कहते हैं. तीर्थकर नाम कर्म का स्वरूप, जिस कर्म के उदय से जीव को तीर्थंकर पद प्राप्त होता उसको तीर्थंकर नाम कर्म कहते हैं. .. तीर्थंकर प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी में चोवीस चौवीस होते हैं ये तीसरे और चौथे आरे में होते हैं इनका जन्म क्षत्रियादि उत्तम कुल में होता है इनके माता के उदर में आने पर इन्द्रादि देव आकर इनकी स्तुति वंदनादि करते हैं इनके जन्म समय इन्द्रादि देव मेरु पर्वत पर जन्माभिषेक करते हैं
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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