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________________ गुजरता है. चतुर्मासमें सवका मिलना मुश्किल, भिन्न भिन्न स्थानोंमें चतुर्मास होनेसे परस्पर मिलनेका समय वर्षों तक भी हाथ नहीं आता इस हालतमें कोई मनुष्य किसी एक अपनी स्वार्थ सिद्धिके लिये आपसमें कुसंप करानेको एक दूसरेकी सच झूठ वातें एक दूसरोंको भराकर जो कदापि विक्षेप डाले या डाला हो तो इस प्रकारके संमेलनसे जो अंदरकी कोइ आंटी पड गइ हो वह फौरन ही सत्य वातके प्रतीत होनेपर निकल जाती है. यह कोइ थोडे लाभका कारण नहीं है ! और मोटेसे मोटा फायदा तो यह है कि अपनेमें एकताकी मजबूती होगी. इस ऐक्यकी जरूरत प्राचीन वा अर्वाचीन हरएक वक्तमें है जो हमारेमें एकता होगी तोही हम हर एक धर्मकार्यको पूरा कर शाशनकी उन्नति कर सकेंगे. और अपने इस कार्यका अनुकरण अन्यभी करेंगे उससेभी हमको फायदा होगा. संमेलनमें संख्यावंध साधु विद्वानवर्गके एकत्रित होनेसे उन विद्वानोंके जुदे जुदे आशय वा तरह तरहके अनुभवी विचारोंके प्रकट होनेकामी यह एक उत्तम साधन है. जव कभी किसी धर्म संबंधि कार्यको तरकी कर उसे ऊंचे दरजे पर पहुंचाना हो या कोइभी सुधारा करना हो तो ऐसे सम्मेलनसे ही हो शकता है. क्यों कि अगर किसी एक कार्यको कोइ अकेला साधु करना या कराना चाहे तो उसमें कई प्रकारके उसे विन आ उपस्थित होते हैं ! अगर वही कार्य सर्वकी संमति या सम्मेलनसे उठाया जाये तो फौरन . ही वह भले प्रकार शिरे पहुंचेगा. उसमें जैसी मदद चाहें. वैसी. मदद हर तर्फसे मिल शक्ति है. हर एक कार्य आसानीसे हो सकता है. इत्यादि बड़े बड़े फायदे सम्मेलनमें समाये हुए हैं.
SR No.010821
Book TitleMuni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
Publication Year1912
Total Pages59
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tithi, Devdravya, & History
File Size3 MB
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