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________________ ४९ उचित समझा गया है. जाहिर भाषण देनेसे धर्मकी कितनी उन्नति हो सकती है इस वातका उत्तर समयके आन्दोलनसे आपको अच्छी तरहसे मिल सकता है. साथमें यहभी स्मरण रहे कि, सम्मेलनमें पास हुए नियमोंको जवतक आप अमलमें न लावेंगे तव तक कार्यकी सिद्धिका होना सर्वथा असंभव है. आत्म उन्नति और धर्म उन्नतिका होना कर्त्तव्यपरायणता परही निर्भर है. दीक्षा संबंधी जो नियम पास किया है उसकी तर्फ पूरा ख्याल रखना. आजकल जो साधु निंदाके पान हो रहे हैं उनमेंसे अधिक भाग वही है जो शिष्य वृद्धिक लालचसे अकृत्यमें तत्पर हो रहा है ! अपना समुदाय यद्यपि इस लांछनसे अभीतक वर्जित है, तथापि संगति दोषसे भविध्यमेंभी ऐसे कुत्सित आरोपका भागी न हो इस लिये इसका स्मरण रखना जरूरी है. महाशयो ! अव मैं आपका अधिक समय नहीं लेना चाहता अपने व्याख्यानको समाप्त करता हुआ इतना कहना अवश्य उचित समझता हूं कि, श्रावकवर्य गोकलभाई दुल्लभदासने इस सम्मेलनके लिये जो परिश्रम उठाया है और बडौदाके श्रीसंघने सम्मेलनमें आये हुए. सैंकड़ों स्त्री मनुष्योंकी जो भक्ति की है वह सर्वथा प्रशंसनीय है. अंतमें अर्हन् परमात्मासे प्रार्थना करता हुआ आपसे कहता हूं कि, परकल्याणकोही स्वकार्य समझ निरंतर धर्म उन्नतिमेंहीं तत्पर रहना. आपका परम कर्तव्य है। " उपसर्गाः क्षयं यान्ति छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः। “ मनः प्रसन्नतामेति पूज्यमाने जिनेवरे ॥१॥
SR No.010821
Book TitleMuni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
Publication Year1912
Total Pages59
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tithi, Devdravya, & History
File Size3 MB
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