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रहे हैं ! यह तो आप जानतेही हैं कि, कोई भी कार्य हो विना संपके पूरा नहीं होता. विना संप कभी किसीकी फतह न हुई है और न होगी. इस लिये आपसमें संपका होना वहुत जरूरी है. __एवं मुनिराज श्रीवल्लभविजयजीने श्रीप्रवर्तकजी महाराजके विवेचनका अनुमोदन करते हुए कहा कि, संपके विना किसी कार्यकीभी सिद्धि नहीं होती. जव कि अपनेमें संपथा तवही संम्मेलनरूप महान् कार्यकी हमें सफलता प्राप्त हुई है.
यदि अपने में संप न होता तो दूर दूरसे अनेक कष्ट सहन कर आनेवाले योग्य मुनिराजोंके अमूल्य दर्शनोंका होना और शाशनकी उन्नतिके करनेवाले अनेक धार्मिक कार्य जो कि इस सम्मेलनद्वारा प्रस्तावित कर पास किये गये हैं या किये जायेंगे उनका होना अति दुर्घट था !
मान्य मुनिवरो ! संसारमें संप एक ऐसा पदार्थ है कि, जिसके प्रभावसे साधारण स्थितिकी जातियेंभी आज उन्नतिके उच्च आसनपर बैठी हुई संसार भरके लिये संपकी शिक्षाका उदाहरण बन रही हैं ! संपकी योग्यताका यदि गंभीर दृष्टिसे विचार किया जाय तो यह एक ऐसा सूत्र है कि, इसके नियमको उल्लंघन करनेवाला कभी कृतकार्यता ( कामयावी-सिद्धि) का मुख देखताही नहीं! इसके नियमका शासन स्याद्वाद मुद्राकी तरह संसारके प्रत्येक पदार्थमें दृष्टिगोचर हो रहा है ! आप अधिक दूर मत जाइये जरा