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________________ शांतिमय जमाना वहते गंगाके निर्मल पानीकी तरह जितना जिससे पिया जावे पी लो ! कोई रोकनेवाला नहीं ! हरएक धर्मवाला अपने अपने धर्मके तत्वोंको समझानेके लिये जगह जगह जाहिर व्याख्यान देता नजर आ रहा है ! अगर इससे वंचित है तो कुछ कदरे केवल जैनसमाजही है ! अपने पूर्वर्षि महात्माओंने जो लाखों जीवोंकों जैनधर्मके अनुयायी बनाया है, वो केवल उपाश्रयमेंही वैठकर नहीं बनाया; किंतु राजदरवारआदि अन्यान्य स्थानोंमें उपदेश देकरकेही बनाया है. यदि वो महात्मा आजकलकी तरह उपाश्रयमेही वैठे रहतेतो, कइएक राजा महाराजा सामंत मंत्री शेठ शाहुकार व अन्य लाखों मनुष्य जैनधर्मी किस तरह होते ? भगवान् महावीरस्वामीने जैनधर्मका कंट्राक्ट ( टेका) किसी खास अमुक व्यक्ति या जातिको नहीं दिया है किंतु उन्होंनेतो दुनियाके उपकारार्थ धर्म फरमाया है ! जैनधर्म अमुक जाति या अमुक देशका नहीं है ! जैनधर्म सारे जगत्का धर्म है ! जरा बारों ओर विचारदृष्टिको फिराकर देखोंगे स्वतः मालूम हो जायगा ! दयाकी वावत जैनधर्मकी छाप हरएक दुनियाके धर्मपर कैसी जवर वैठी हैं ? जो लोग पक्षपातके गेहरे गढ़ेमें गिरे हुए हैं उनकोभी अपनी कलम व जवान मुवारिकसे जाहिर करना पड़ता है कि, दयाकी वावतमें जैन सबसे आगे बढा हुआ है ! मान्य मुनिवरो! यदि इसी प्रकार जैनधर्मके रहस्य व तत्वोंका भली प्रकार वर्णन किया जावे तो क्या लोगोंको : असर कुछभी न होवे ? नहीं नहीं अवश्यही होवें. इसलिये "गइ सो गइ अब राख रहीको" इस कहावत मृजिव आगेके
SR No.010821
Book TitleMuni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
Publication Year1912
Total Pages59
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tithi, Devdravya, & History
File Size3 MB
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