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॥ॐ॥ . “ मुनिसम्मेलन.”
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रलोकवासी मातःस्मरणीय जैनाचार्य न्यायांभोनि
धि श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वर ( श्री आत्मारामजी ) महाराजके साधुओंकी १३ जून सन् १९१२ गुरुवारको देश गुजरात राजधानी बडौदा उपाश्रय जानीशेरीमें एक महती सभाहुई थी. तीर्थ यात्राके सवव मुझेभी इस सभाके देखनेका सौभाग्य मिला. उक्त परिपदमें जो जो प्रस्ताव पास हुए हैं उनका वर्णन पाठकों के दर्शनार्थ आगे किया जावेगा. सवसे प्रथम यह कह देना उचित समझताहूं कि, सभापतिजी वा अन्य महात्माओंकी वक्तृताका अक्षरशः अनुवाद करना तो दुस्साध्य ( मुश्किल ) हैपरंतु आशय वर्णन करने में संभव है कि त्रुटि न होगी.
उक्त सभाका प्रथमाधिवेशन साढेआठसे साढेदश बजे तक हुआथा. सभापतिके आसनको जैनाचार्य श्री विजयकमलमूरिजीने सुशोभित कियाथा. .'
दर्शक स्त्री मनुष्योंका समुदाय अनुमान एक सहस्रसे अधिक मालूम देताथा. नियत समयपर सभापतिजीनेभी अपने आसनको अलंकृत किया. आपके आगमनमें जयध्वनिसे . मनुष्योंने जो उत्साह प्रकट किया वह एक असाधारण था.