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________________ ६४ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाला. शिक्षापाठ ३४. ब्रह्मचर्यविषे सुभाषित. . .. ' दोहरा. ' निरखीने नवयौवना, लेश न विषयनिदान; 'गणे काष्ठनी पूतली, ते भगवानसमान. आ संघका संसारनी, रमणी नायकरुप; ए त्यागी, त्याग्यु वधु, केवळ शोकस्वरूप. २ 'एक विषयने जीतता, जीयों सौ संसार; " नृपति जीततां जीतिये, दळ, पुर, ने अधिकार. . "विषयरूप अंकूरथी, टळे ज्ञान ने ध्यान ; लेश मदीरापानथी, छाके ज्यम अज्ञान. जे नववाट विशुद्धथी,घरे शियळ सुखदाइ। भव तेनो लव पछी रहे, तत्त्ववचन ए भाइ. ५ असुंदर शीर्यळसुंरतरूं, मन वाणी ने देह; जे नरनारी सेवशे, अनुपम फल के तेह. ६ पात्रं विना वस्तु न रहे, पात्रे आत्मिक ज्ञान "पात्र थवा सेवो सदा, ब्रह्मचर्य मतिमान!- ७
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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