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________________ यतना. सावधानीधी पाळी शकता नधी. जिनेश्वर भगवते वोधेली स्थल अने मूक्ष्म दया प्रत्ये ज्यां वेदरकारी छे, त्यां ते वह दोपथी पाळी काय छे. पयतनानी न्यूनताने लीधे छे. उतावळी अने वेगभरी चाल, पाणी गळी तेनो संखालो राखवानी अपूर्ण विधि, काष्ठादिक इंधननो वगर खंचेर्य, बगर जाय उपयोग; अनाजमां रहेला सूक्ष्म जंतुओनी अपूर्ण नपास, पुंज्या प्रमाया वगर रहेवां दीधेलां ठाम, अस्वच्छ राखेला ओरडा, आंगणामां पाणीनुं ढोळवं, एठनुं राखी मूक, पाटला वगर घसघखती थाळी नीचे मृकवी, एवी पीतानं आ लोकमां अस्वच्छता, अगवड, अनारोग्यता इत्यादिक फलस्प थाय छ; अने परलोकमां दुःखदायि महापापना कारण पण थद पड़े छे, ए माटे थइने कडेवानो वोध के चालवामां, वेसवामां, उठवामां, जमवामां अने वीजा हरेक प्रकारमा यतनानो उपयोग करवो. एपी द्रव्ये अने भावे बन्न प्रकारे लाभ छे. चाल धीमी अने गंभिर राखवी, घर स्वच्छ राखवा, पाणी विधिसहित गळाववं, काष्टाटिक इंधन खंखेरी वापरवां ए कंइ आपणने अगवट पटत काम नयी तमतमा विशेप वखत जतो नथी. एवा नियमो दाखल करीदीधा पछी पाळया मुम्केल नथी. एबी विचारा असंख्यात निरपराधी जंतुओ वचे छे. प्रत्येक काम यनना पूर्वक ज करवं ए विवेकी श्रावकर्नु कर्तव्य छे.
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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