SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कामदेव श्रावक. ३९ सर्व विरतिपरिणामरूप धर्म पामवो दुर्लभ छे; एवी चिंतवना ते अग्यारमी 'बोधदुर्लभ भावना.' १२. धर्मना उपदेशक तथा शुद्ध शास्त्रना वोधक एवा गुरु अने एनुं श्रवण मळवुं दुर्लभ छे एवी चितवना ते वारमी 'धर्मदुर्लभ भावना. ' आ वार भावनाओ मननपूर्वक निरंतर विचारवाथी सत्पुरुषो उत्तम पदने पाया छे, पामे छे, अने पामशे• शिक्षापाठ २२. कामदेव श्रावक महावीर भगवान्ना समयमां द्वादशवृत्तने बिमल भावी धारण करनार, विवेकी अने निर्ग्रथवचनानुरक्त कामदेव नामना एक श्रावक तेओना शिष्य हता. सुधर्मा सभामां इंद्रे एक वेळा कामदेवनी धर्मअचलतानी प्रशंसा करी. एवामां त्यां एक तुच्छ बुद्धिवान देव वेठो हतो तेणे एव सुतानो अविश्वास बतान्यो, अनेकां के ज्यांसुधी परिषद प्रज्या न होय त्यांसुधी बधाय सहनशील अने धर्मदृढ जणाय आ सारी बात हुं एने चळावी आपीने सत्य करी देखाई, धर्मदृट कामदेव ते वेळा कायोत्सर्गमां लीन हता. देवताप प्रथम हाथतुं रूप वैक्रिय कर्युः अने पछी कामदेवने खुब गुंथा तोपण ते अचळ रहा, एटके मुशल
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy