SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वाहुवळ. रह्यो छे धारणा धरी रहे छे. योजेली योजना के विवेक वखते हृदयमांधी जता रहे एवो संसारमोह छे. एथी आपणे एम निःसंशय समजवू के, सत्य वचन, दया, क्षमा, ब्रह्मचर्य अने समता जेवी आत्ममहत्ता कोइ स्थळे नधी. शुद्ध पंचमहाव्रतधारी भिक्षुके जे रिद्धि अने महत्ता मेळवी छे, ते ब्रह्मदत्त जेवा चक्रवत्तीए लक्ष्मी, कुटुंब, पुत्र के अधिकारथी मेळवी नथी, एम मारुं मानवु छ ! - - शिक्षापाठ १७. बाहुबळ. बाहुवल एटले पोतानी भूजानुं वळ एम अहीं अर्थ करवानो नथी, कारण के, वाहुवळ नामना महापुरुपर्नु आ एक नानु पण अद्भुत चरित्र छे. सर्व संग परित्याग करी, भगवान ऋषभदेवजी भरत अने वाहुबल नामना पोताना वे पुत्रोने राज्य सौंपी विहार करता इता त्यारे, भरतेश्वर चक्रवर्ती थयो. आयुधशाळामां चक्रनी उत्पत्ति थया पछी प्रत्येक राज्यपर तेणे पोतानी आनाय वेसाडी, अने छखंडनी प्रभुता मेळवी. मात्र वाहुवळे ज ए प्रभुता अंगीकार न करी. आधी परिणाममा भरतेश्वर अने वाहुवळने युद्ध मंडायु. घणा बखत सुधी भरतेश्वर, के वाहुवळ ए बनेगांथी एक हट्या नहीं, त्यारे क्रोधावेशमा आवी जइ भरतेश्वरे बाहुवल पर चक्र मूक्यु. एक वीर्यथी उत्पन थयेला भाइपर चक्र प्रभाव न करी शके. आ निय
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy