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________________ २६ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमांळा. छे. जिनेश्वर भगवाननी भक्ति अवश्य करवी जोइए ए हुं मान्य राखुं छ. सत्य - जिनेश्वर भगवाननी भक्तिथी अनुपम लाभ छे, एनां कारणो महान् छे; तेमना परम उपकारने लीघे पण तेओनी भक्ति अवश्य करवी जोइए. वळी तेओना पुरूषार्थनुं स्मरण थतां पण शुभ वृत्तिओनो उदय थाय छे. जेम जेम श्री जिनना स्वरूपमा वृत्ति लय पामे छे, तेम तेम परम शांति प्रवहे छे. एम जिनभक्तिनां कारणो अत्र संक्षेपमां कलांछे ते आत्मार्थीओए विशेषपणे मनन करवायोग्य छे. शिक्षापाठ १५. भक्तिनो उपदेश. तोटक छंद. शुभ शीतळतामय छांय रही, मनवांछित ज्यां फळपंक्ति कही; जिन भक्ति गृहो तरु कल्प अहो, भजिने भगवंत भवंत लहो. निज आत्मस्वरूप मुदा प्रगटे, मन ताप उताप तमाम मटे; अति निर्जरता वणदाम गृहो, भजिने भगवन भवंत लहो. ܐ
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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