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________________ २३ जिनेश्वरनी भक्ति भाग १. वीजाने तेओ केमतारीशके ? वळी केटलाक अवतार लेवारूपे परमेश्वर कहेवरावे छे तो त्यां तेओने अमुक कर्मनुं भोग व, वाकी छे एम सिद्ध थाय छे. जिज्ञासु-भाई, त्यारे पूज्य कोण? अने भक्ति कोनी करवी के जेवढे आत्मा स्वशक्तिनो प्रकाश करे. सत्य-शुद्ध सच्चिदानंदस्वरूप जीवनसिद्ध भगवान् तेम ज सर्व दूषणरहित, कर्ममलहीन, मुक्त, वीतराग सकळ भयरहित, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी जिनेश्वर भगवाननी भक्तिथी आत्मशक्ति प्रकाश पामे छे. जिज्ञासु-एओनी भक्ति करवाथी आपणने तेमो मोक्ष आपे छ एम मानवू खरूं? सत्य-भाइ जिज्ञासु, ते अनंतज्ञानी भगवान् तो निरागी अने निर्विकार छे. एने स्तुति निदानुं आपणने कंइ फळ आपवावं प्रयोजन नथी. आपणो आत्मा अज्ञानी अने मोहांध थइने जे कर्मदळधी घेरायेलो छे ते कर्मदळ टाळवा अनुपम पुरुषार्थनुं अवश्य छे. सर्व कर्मदळ क्षय करी अनंत ज्ञान, अनंतदर्शन, अनंत चारित्र, अनंत वीर्य,अने स्वस्वरूपमय थया एवा जिनेश्वरोनुं स्वरूप आत्मानी निश्चयनये रिद्धि होवाथी ते भगवान, स्मरण, चितवन, ध्यान अने भक्ति ए पुरुषायंता आपे छे. विकारथी आत्मा विरक्त करेछे. शांति अने निर्जरा आपछे, जेम तरवार हाथमां लेवाथी शौर्यत्ति अने
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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