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श्रीमद राजचंद्र मणीत मोक्षमाळा.
ग्या होय, समभावि होय, अने निरोगतायी सत्योपदेशक होय, हुंकामां तेओने काष्टस्वरूप सद्गुरु जाणवा. पुत्र ! गुरुना आचार, ज्ञान ए सम्बंधी आगममां वहु विवेकपूर्वक वर्णन कर्युं छे, जेम तुं आगळ विचार करतां शीखतो जइश, तेम पछी हुं तने ए विशेष तत्त्वो वोधतो जग.
पुत्र - पिताजी, आपे मने हुंकामां पण बहु उपयोगी, अने कल्याणमय कांः हुं निरंतर ते मनन करतो रहीश.
शिक्षापाठ १२. उत्तम गृहस्थ.
संसारमां रह्या छतां पण उत्तम श्रावको गृहाश्रमया आत्मसाधनने साधे छे; तेओनो गृहाश्रम पण वखणाय छे.
ते उत्तम पुरुष, सामायिक, क्षमापना, चोविहारप्रत्याख्यान इ० यम नियमने सेवे छे.
परपनि भणी मा वहेननी द्रष्टि राखे छे. सत्पात्रे यथाशक्ति दान दे छे.
शांत, मधुरी अने कोमळ भाषा बोले छे. सत्शास्त्रनुं मन करे छे.
चने त्यांसुधी उपजीविकामां पण माया, कपट, ३० करतो नथी.
स्त्री, पुत्र, मात, वात, मुनि अने गुरु ए सघळाने यथायोग्य सन्मान आपे छे.