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________________ सद्गुरुतत्त्व भाग १. १७ वीजो निश्चयधर्म-पोताना स्वरूपनी भ्रमणा टाळवी, आत्माने आत्मभावे ओळखवो 'आ संसार ते मारो नथी, ९ एथी भिन्न, परम असंग सिद्धसदृश्य शुद्ध आत्मा टु', एवी आत्मस्वभाववर्जना ते 'निश्चयधर्म' छे. जेमां कोइ प्राणीनु दुःख, अहित के असंतोपरयां छे त्यां दया नवी; अने दया नयी त्यां धर्म नथी. अहंद भगवाननां कहेलां धर्मतत्वी सर्व माणी अभय थाय छे. शिक्षापाठ १०. सद्गुरुतत्त्व भाग १. पिता-पुत्र, तुं जे शाळामां अभ्यास करवा जाय छे त शालानो शिक्षक कोण छे ? पुत्र-पिताजी, एक विद्वान अने समजु ब्राह्मण छे. पिता-तेनी वाणी, चालचलगत वगेरे केवां छे ? पुत्र-एनी वाणी बहु मधुरी छे. ए कोइने अविवेकयी बोलावता नधी, अने वह गंभीर छ वोले छ सारे जाणे मुखमांयी फुल झरे छे. कोइनुं अपमान करता नथी; अने अपने योग्य नीति समजाय तेवी शिक्षा आपे छे. पिता-तुं त्यां शाकारणे जाय छे ते मने कहे जोइए. पुत्र-आप एम केम कहो छो, पिताजी! संसारमा विच
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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