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________________ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाळा. शांतिनाथ भगवान भसिद्ध, राजचंद्र करुणाए सिद्ध. शिक्षापाठ ३. कर्मना चमत्कार, हुँ तमने केटलीक सामान्य विचित्रताओ कही जउं छ ए उपर विचार करशो, तो तमने परभवनी श्रद्धा दृढ थशे. एक जीव सुंदर पलंगे पुष्पशयामां शयन करे छे, एकने फाटल गोदडी पण मळती नथी. एक भात भातनां भोजनोथी वृप्त रहे छे, एकने काली जारना पण सांशा पढेछे. एक अगणित लक्ष्मीनो उपभोग ले छे, एक फूटी वदाम माटे थइने घेर घेर भटके छे. एक मधुरां वचनोथी मनुप्यनां मन हरे छे, एक अवाचक जेवो थइने रहेछ. एक सुंदर वस्त्रा. लंकारथी विभूपित थइ फरे छे, एकने खरा शियानामां फाटेलं कपडं पण ओढवाने मळ्तुं नथी. एक रोगी छे, एक प्रवल छे. एक बुद्धिशाळी छे, एक जडभरत छे. एक मनोहर नयनवाले छे, एक अंध छे. एक लूलो, के पांगळो छ, एकना पग ने हाथ रमणीय छे. एक कीर्तिमान छे, एक अपयश भोगवे छे. एक लाखो अनुचरो पर हुकम चलावे छे, अने एक तेटलाना ज टुंवा सहन करे छे. एकने जोइने आनंद उपजे छे, एकने जोतां वमन थाय छे. एक संपूर्ण इंद्रियोवाळो छ, अने एक अपूर्ण इंद्रियोवाळो छे. एकने दिन दुनिया लेशभान नथी, ने एकनां दु:खनो किनारो पण नथी.
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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