SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विविध प्रश्नो भाग १. १८७ ६ इंद्रियो तमने जीते अने मुख मानो ते करतां तेने तमे जीतत्रामांज मुख, आनंद अने परमपद प्राप्त करशो. ७ रागविना संसार नथी अने संसारविना राग नथी. ८ युवावयनो सर्व संग परित्याग परमपदने आपेछे. ९ ते वस्तुना विचारमां पहोंचो के जे वस्तु अतक्रिय स्वरुप छे. १० गुणीना गुणमां अनुरक्त थाओ. शिक्षापाठ १०२. विविध प्रश्नों भाग १. आजे तमने हुं केलांक प्रश्नो निर्ग्रथमवचनानुसार उत्तर आपचा माटे पूछें छई. कहो धर्मनी अगत्य शी छे ? उ०- अनादि काळधी आत्मानी कर्मजाळ टाळवा माटे. म० - जीव परेलो के कर्म ? उ०- नन्ने अनादि छे. जीव पहेलो होय तो ए विमळ वस्तुने मत्र चळगवानुं कंइ निमित्त जोइए. कर्म पेहेलां कहो तो जीव विना कर्म कर्या कोणे ? ए न्यायथी बन्ने अनादि छे. म० - जीव रुपी के अरुपी ? उ०- रुपी पण खरो; अने अम्पी पण खरो
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy