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________________ १६२ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाला. अत्याज्य गणी कोइ वखत सेवी जवाय; एक गामथी वीजे पहोंचतां मुधी वाटमा जे जे गाम आववानां होय तेनो रस्तो पण पूछवो पडे छे नहीं तो ज्यां जवानुं छे त्यां न पहोंची शकाय. ए गाम जेम पूछयां पण त्यां वास कों नहीं तेम पापादिक तत्वो जाणवां पण 'ग्रहण करवां नहीं. जेम वाटमां आवतां गामनो त्याग कर्यो तेम तेनो पण त्याग करवो अवश्यनो छे. शिक्षापाठ ८४. तत्त्वावबोध भाग ३. नवतत्त्व काळभेदे जे सत्पुरुषो गुरुगम्यताथी श्रवण, मनन अने निदिध्यासन पूर्वक ज्ञान लेछे, ते सत्पुरुषो महा पुण्यशाळी तेमज धन्यवादने पात्र छे. प्रत्येक सुज्ञपुरुपोने मारो विनयभावभूपित एज वोध छे के नवतत्चने स्वबुद्धयानुसार यथार्थ जाणवां. महावीर भगवंतनां शासनमा बहु मतमतांतर पड़ी गया छे, तेनुं मुख्य कारण तत्त्वज्ञान भणीथी उपासक वर्गनुं लक्ष गयु ए छे. मात्र क्रियाभावपर राचता रह्या; जेनुं परिणाम दृष्टिगोचर छे. वर्तमान शोधमां आवेली पृथ्विनी वसति लगभग दोढ अवजनी गणाइ छ तेमां सर्व गच्छनी मळीने जैनमजा मात्र वीश लाख छे. ए प्रजा ते श्रमणोपासक छे. एमाथी हुँ धारु छउं के नवतचने पठनरुपे
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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