SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मान संबंधी चे बोल भाग ३. १५३ ४. देशकालादि नो बोटां पण अनुकुल हे तो ते पयां मुधी? एनो उत्तर, केप रहेल मिद्धांतिक मति मान, श्रुनान, मामान्यमनयी ज्ञान, काळ भावे गावीय रमार बसे रहवा तमाथी अटी हजार गयां, चाकीमाढा प्रदार हमार गर्ग सादा पटल पंनमानी पूर्णता मुधी कालनी अनुगमना . देगल ने लेडने अनमल छे. शिक्षापाठ ७९. ज्ञान संबंधी वे बोल भाग ३. होशिप गिनार करीप. १. भारम्पकना भी ? ए मह पिचारनु आवर्नन पुनःविभपायी करीए. मुख्य अवश्य स्वस्वम्पस्थिनिनी थगिए गहवं ए. मनन दुःखनो नाम, दुःखना नाशयी भालान अंगिक सुख ए देव छ केमके मुख निरंतर आन्मान मियन में पण जे स्वस्वरूपिक मुसळे ते. देशनाळ भागने माने श्रद्धा, मान इत्यादि उत्पन्न करवानी आवश्यकता अने सम्पग भाव सहिन उपगति, न्यांधी माहिरमा माननटेरे, जन्म, त्यां सम्यग् भावनी पुन: रमति, नगमाननी विशुद्धता भने द्धि, ठेवटे परिपूर्ण आत्ममापन मान अने तेनुं सन्य परिणाम केवळ सर्व
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy