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________________ धर्मध्यान भाग १. १४३ विचार क्याथी आवे ? कोइ आत्मिकज्ञानहीन एम पण कहेछे के आथी कोइ विशेप मुखनु साधन त्यां रघु नहि एटले अनंत अव्यावाध सुख कही देछे, आ एजें कथन विवेकी नथी. निद्रा प्रत्येक मानवीने प्रिय छे; पण तेमा तेओ कइ जाणी के देखी शकता नथी; अने जाणवामां आवे तो मात्र स्वमोपाधिनुं मिथ्यापणुं आवे; जेनी कंड असर पण थाय ए स्वमा वगरनी निद्रा जेमा सूक्ष्मस्थूळ सर्व नाणी अने देखी शकाय; अने निरुपाधियी शांत उंघ लइ शकाय तो तेनुं ते वर्णन | करी शके १ एने उपमा पण शी आपे ? आ तो स्थूल द्रष्टांत छे; पण वालविवेकी ए परथी कंइ विधारकरी शके ए माटे कयुं छे, - भीलनुं द्रष्टांत, समजाववा रुपे भाषाभेद फेरफारथी तमने कही वताव्यु. शिक्षापाठ ७४. धर्मध्यान भाग १. । भगवाने चार प्रकारनां ध्यान कह्यां छे. आर्त, रौद्र, धम अने शुक्ल. पहेलावे ध्यान त्यागवा योग्यछे. पाछळनां वे ध्यान आत्मसार्यकरुप छे. श्रुतज्ञानना भेद जाणवा माटे, शास्त्र विचारमा कुशल थवा माटे, निग्रंथप्रवचननुं तत्व पामवा माटे, सत्पुरुपोए सेवा योग्य, विचारवा योग्य अने ग्रहण करवा योग्य धर्मध्यानना मुख्य सोळ भेद छे.
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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