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लोकमां वधेली जीज्ञासा सूचवे छे, घणी सारी पाठशाला. ओमां आ ग्रंथ धर्म-नीति-तत्त्वज्ञानना शिक्षण अर्थे मुकरर करवामां आव्यो छे तेथी पण एनी मागणी विशेष जोवामां आवेछे. आथी आनी चोथी आत्तिनो खप पण टुंक मुदतमां जागशे, एम अमने लागेछ. हिंदी भाषामां आनु भाषांतर पण थयेल छ, मराठीमां थवानुं छे ए जे हेतु ए आ ग्रंथ योजायलो छे, तेनी सिद्धि साधकता अने तेनी उत्तमताना पुरावारुप छे. ____ आग्रंथ जीज्ञासानी वृद्धि करशे, एवी आशा आम जोता सफल थइ छे, छतां आ ग्रंथना पहेला, त्रीजा अने चोथा भागो रची तैयार करी प्रगट करवा कोइ वीरपुरुष वहार नथी आव्यो ए खेद जनक छे. संपूर्ण तत्त्वज्ञाननी टोचे पहोंचयूँ तो रां, पण सामान्य वोधनीए ए मंदता सूचवे छे जे खरेखर खेद युक्त छे. आ कार्य कोइ मुख तत्त्वजिज्ञासु माथे लइ पार पाडशे, एवी अमे वीजी आरत्तिनी प्रस्तावनामां आशा प्रगट करी हती, पण ए वातने पांच वरस थइ गयांछे मूळ कर्ता पुरुषे पोतानी अंत अवस्थाए प्रकाशेल अनुक्रमणिका माटे पण कोइनी मागणी थइ नथी! पण आथी अमे निराश नथी थता. हजी कोइने कोइ सत्वशाली महानुभाष दर्शन देशेज, केमके वहु-रत्ना वसुंधरा अने एने आ अनुक्रमणिका उपयोगी थशे. . श्रीमद् राजचंद्रना विचारादि संग्रहनो एक म्होटो ग्रंथ क्यारनो लोक सेवामां रजु थयोछे, तेमां पण आ मोक्षमा